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20- 06- 22धारावाहिक मकाफात - ए - अमल episode 11



"अब चुप  क्यू खड़ा  है , बुत बना  हुआ कुछ  बोल " रुकय्या ने कहा

साद ने गुस्से में कहा " ठीक  है  कल  से अब मैं जाऊंगा दुकान पर  और जब  तक  उन दोनों को वहा  से निकाल नही दूंगा  बदनाम  करके  तब  तक  चेन  की सास नही लूँगा , आज  उन दोनों की वजह  से मेरे बाप ने मुझ पर  हाथ  उठाया  है , अब तुम देखती  जाओ माँ, मैं कैसे उन दोनों को अब्बू की नज़रो में गिराता हूँ कैसे अब्बू खुद  उन दोनों का हाथ  पकड़  कर  दुकान से बाहर  निकाल फेकेंगे, बहुत  भरोसा  है ना, उन्हें गेरो पर उसी की वजह  से उन्होंने अपने खून  पर हाथ  उठाया  आज , "

"ये कही  बात तूने  मर्दो वाली, बस  इस बात का ध्यान रखना  कुछ  भी  करने  से पहले  सो मर्तबा सोच  लेना वो दोनों के दोनों बेहद  चलाक है  कही  तुझे  ही बाप की नज़रो में गिरा दे," रुकय्या ने कहा

"नही अम्मी इस बार मैं ऐसा पासा फेकूंगा की वो दोनों एक ऐसे चक्रव्यूह में फस  जाएंगे जिससे निकलना आसान  नही होगा और मजबूरन  अब्बू को उन्हें निकालना होगा ना चाहते  हुए  भी  बस  देखती  जाओ अब, अब तुम्हारा बेटा कैसे उस दुकान का मालिक बनता  है" साद ने कहा

"चल  अच्छा अब खाना  खा, लगाती  हूँ जाकर भाई  को भी  बुला उसने भी  नही खाया  अभी, तेरे अब्बू तो अब खाना  खाने  से रहे  उनके भांजे  को जो नाराज़ कर  दिया और वो बाहर  से जो लोट गया  " रुकय्या ने कहा

"छोड़ो  भी  अम्मी अब्बू का तो रोज़ का है , बचपन  से सुनते और देखते  आ  रहे  है  उन्हें हमारे  घर  से ज्यादा फूफी के घर  की फ़िक्र लगी  रहती  है  जबसे  फूफा इस दुनिया से गए  थे  " साद ने कहा


"ठीक  कह  रहा  है  तू, उनका बस  नही चला  वो तो अपनी किसी भांजी  को ही अपनी बहु  बना  कर  मेरे सर  पर  बैठा  देते अगर तुम दोनों ऐमन  और मिराल से छोटे  ना होते," रुकय्या ने कहा, चलो अच्छा खाना  खाओ ये तो रोज़ का है । एक दिन सब  की आँखे  खुल  जाएंगी और पता  चल  जाएगा कौन अपना  है  और कौन पराया ।



हम्माद जो की घर  आ चुका  था । मोबाइल में ज़ोया का कोई मैसेज  नही देखा  तो समझ  गया  की वो सुबह वाली बात से नाराज़ है , यार हम्माद उसे अभी मनाना  पड़ेगा  बस  एक बार मेरा काम पूरा हो जाए जो भी  पैसे उस पर  खर्च  किए  है  सूत समेत वापस  लेलूं उसके बाद कही भी  जाए मुझे  कोई फर्क नही पड़ेगा । यही  सोच  कर  हम्माद ने ज़ोया को सॉरी  का मैसेज  भेजा  और कॉल  भी  की लेकिन ज़ोया ने फ़ोन  नही उठाया और हम्माद काफी देर कोशिश  करने  के बाद मोबाइल पास रख  कर  लेट गया ।

वही  दूसरी  तरफ , अशफ़ाक़  साहब  अपने बेटे अली को ढूंढ़ने  के लिए बाहर  आये  तो देखा  वो बाहर  बच्चों के साथ  खेल  रहा  था । अपने अब्बू को देख  वो डर  गया  और उनके साथ  खेल  छोड़  कर  घर  आ  गया  डरते  डरते  कि कही  अब्बू मारे नही।


थोड़ी देर बाद सब  लोग खाना  खाते  है  तभी  आरज़ू  का फ़ोन  आता  है  अशफ़ाक़  साहब  के पास।

"ये लो तुम्हारी बेटी का फ़ोन आ  गया  " अशफ़ाक़  साहब  ने फ़ोन  उठाते  हुए  सहर  से कहा

जोया अंदर  जाने लगी  खाना  खा कर  तभी  उसकी माँ ने कहा टोकते हुए  " बहन  से बात नही करना  किया और ये बर्तन  कौन रख  कर  आएगा  बावर्ची खाने  में "

"उफ्फ यार, आज  एक तो दिमाग़ वैसे ही इतना ख़राब  है  और उपर  से अम्मी भी  काम पर काम बताये  जा रही  है  " जोया ने अपने आप  से कहा


"चलो  अली जल्दी से बहन  का हाथ बटाओ घर के काम में खाना खा कर , लड़को को भी घर  के काम आना  चाहिए  ये सिर्फ लड़कियों की ज़िम्मेदारी नही है " अशफ़ाक़  साहब  ने कहा

"अरे वो क्यू करेगा  घर का काम वो लड़का  है  लड़कियों वाले काम करते  अच्छा लगेगा  रुको मैं ही मदद करा  देती हूँ फ़ोन पर  बात करते  करते  " सेहर ने कहा

क्या मतलब  आपका, घर का काम करना सिर्फ घर  की औरतों का ही फर्ज़ है  ना की आदमियों का, जब  घर में सब  भाई  बहन  एक साथ  रहते  है  तो माँ को सब  की परवरिश  एक जैसी करनी  चाहिए  कोई बेदभाव  नही करना  चाहिए , अगर अली अपनी बहन  की घर  के काम में मदद  करा  देगा तो क्या कोई क़यामत आ  जाएगी या धरती घूमना  बंद  कर  देगी कि ये क्या हो गया  आज  एक लड़के  ने घर के काम में हाथ  बटा दिया। अशफ़ाक़  साहब  और कुछ  कहते  तभी  सेहर बीच में ही उनकी बात काटते हुए बोली

उफ्फ आप  से तो उलझना मतलब  दीवार  में सर  फोड़ने के बराबर  है , जाओ अली जाकर अपनी बहन  कि मदद  कराओ  वरना  तुम्हारे अब्बू यही  हम  सब  को दुनियादारी और मर्द और औरत  के हुकूक ( फर्ज़ ) समझाने  लगेंगे ।


"ठीक  है अम्मी " अली ने कहा और जोया के साथ  बावर्ची  खाने  में चला  गया  उसकी मदद  कराने ।


ज़ोया गुस्से में बर्तन  धो  रही  थी  और अली उसे बाहर  से बर्तन  ला लाकर दे रहा  था ।

"उफ्फ इतनी गर्मी हो रही  है  यहाँ, अली मेरे भाई  जल्दी से सारे बर्तन  ले आ  जो मैं फ़ारिग हूँ इस काम से, आपी भी  इतनी जल्दी शादी  होकर ससुराल  चली  गयी  उनका फ़ोन  भी  अभी  रह  गया  था  आने को, अच्छा खासा  कमरे  में जा रही  थी  आराम  करने  लेकिन अम्मी ने रुका लिया। एक तो आज  वैसे ही इतना गुस्सा था  मुझे  उस हम्माद पर  और ऊपर से अब ये बर्तन  धुलने का नाम ही नही ले रहे  है  " जोया ने अपने आप  से कहा

"ये लो जोया आपी  आख़री प्लेट इसे भी  धो धो और अम्मी ने कहा है  कि दो कप चाय  बना  दो हम  दोनों के लिए " अली ने कहा


"और कुछ , अम्मी से कहना  और कुछ भी करवाना  हो इस मुलाजिम से तो वो भी  बता दो, इतनी गर्मी में चाय  पता  नही लोग कैसे पी  लेते है  " जोया ने गुस्से में कहा


अली उसे इस तरह  देख  हसने  लगा 

"तू  भी  हस  ले, देख  तेरी बीवी से सारे बदले  लूंगी  बड़ा  होजा पहले  तू  " जोया ने कहा

पहले  इस बावर्ची  खाने  से तो जान छूट वा लो अपनी बाद में किसी और से बदला  लेना आपी  ये कह  कर  अली भाग  गया 


ज़ोया ये सुन उसे पकड़ने  के लिए  अपना हाथ  बढ़ाती पर वो भाग  गया  तब  वो गुस्से में बोली "अली के बच्चे  देख लूंगी  तुझे , आज  तो पिद्दी के भी  पर  निकल आये  है  जरा  देखो तो "


ज़ोया गुस्से में बर्तन धो कर चूल्हे पर चाय रख देती। थोड़ी देर बाद चाय दे आती बाहर बैठे अम्मी अब्बू को।

"जीती रहो मेरी बच्ची अब जाओ जाकर आराम करो " अशफ़ाक़ साहब ने कहा

"जी अब्बू " जोया ने कहा

"मोबाइल में मत  लग  जाना किताब खोल  कर  पढ़ाई करना  " उसकी अम्मी ने कहा

जोया बुरा सा मुँह बना  कर  वहा  से चली  गयी  और बोली अपने आप  से " आज  तो बहुत  थक  गयी"  तभी उसकी नज़र  मोबाइल पर  जाती जिसपर  हम्माद की काफी मिस्ड कॉल और मैसेज  आये  हुए  थे  सॉरी के

आ गयी  इसे याद मेरी, अब सॉरी लिख  कर  भेज  रहा  है  जब  पता  चला  की अब दिन भर  तो अय्याशी कर  आया  हूँ चलो अब चलते  है  मेहबूबा  से माफ़ी मांगने।

इसे अब फ़ोन  या मैसेज  नही करूंगी में।

ज़ोया ये कह  कर  बेड पर  बैठ  गयी  और किताब हाथ में ले ली।

तब ही हम्माद का फ़ोन  आया  और ज़ोया ने काट दिया। उसने दो तीन  बार यही  करा ।

हम्माद ने मैसेज  भेजा  " ज़ोया मैं जानता हूँ तुम मुझसे  नाराज़ हो इसलिए फ़ोन  नही उठा  रही  हो मेरा, सुबह मैं कुछ  ज्यादा ही तुमसे मिलने के लिए  उतावला हो गया  था  इसलिए  ज़िद्द कर  बैठा  प्लीज् मेरा फ़ोन  उठाओ  मुझे  नींद  नही आएगी  तुम्हारी आवाज़  सुने बिना "

हम्माद ने दोबारा फ़ोन  किया ज़ोया ने मैसेज पढ़ लिया था  उसने मोबाइल उठाया और बोली " आ गयी मेरी याद, मिल गयी माफ़ी मांगने की फुर्सत जो भी बात करनी  है  जल्दी करो  मुझे  फ़ोन  रखना  है  "

ज़ोया मेरी बात सुनो, मैं सुबह वाली बात पर  बेहद  शर्मिंदा  हूँ मुझे  यूं इस तरह  तुमसे मिलने की जबरदस्ती  नही करनी  चाहिए  थी  वो भी  जब , जब  तुम्हारे अब्बू वही  आस  पास ही थे , तुम्हे जब  तक दिन में एक दो बार देख  ना लू मुझे  सुकून  नही मिलता, तुम मेरा सुकून  हो आज  मेरा दिन बिलकुल भी  अच्छा नही गया  तुम्हारी मुझसे  नाराज़गी की वजह  से, ज़ोया मुझे  माफ करदो 


ज़ोया ये सुन थोड़ा  सोच  कर  बोली "तुम दिल से माफ़ी मांग रहे  होना "

"हाँ, ज़ोया एक दम  दिल के कोने से और आँखों में आंसू  लेकर" हम्माद ने कहा

"ये पहली और आखिरी  गलती  होना चाहिए  हम्माद आज  के बाद कभी माफ नही करूंगी  चाहे  तुम मेरे पेरो में भी  क्यू ना गिर जाओ " ज़ोया ने कहा

"ठीक  है, ठीक  है  मैं वादा करता  हूँ आजके  बाद ऐसा वैसा कुछ  नही करूंगा  जो मेरी जान को अच्छा ना लगे  " हम्माद ने कहा

"ठीक  है , माफ किया मेने लेकिन पहली और आखिरी  बार " ज़ोया ने कहा

"शुक्रिया बहुत  बहुत  आपका , हम  ना चीज  को हमारी  गलती  के लिए  माफ करने  का " हम्माद ने कहा

ज़ोया इस तरह उसके मुँह से सुन हस  पड़ी

"शुक्र है  की तुम हसीं तो काश  की मैं वहा  हो सकता  तुम्हारी उस मुस्कान को देखने  के लिए  जो अभी  अभी  तुम्हारे चेहरे  से होकर गुज़री थी  मेरा बस  चले  तो मैं उस मुस्कान को कैद करके  रखलू  जिससे तुम हर समय  मुस्कुराती रहो  " हम्माद ने प्यार भरे  अंदाज़ में कहा

"तो ले जाओ अपनी दुल्हन बना  कर  और देखते  रहो  मेरे चेहरे  को दिनों रात " ज़ोया ने कहा

हम्माद ये सुन बोला थोड़ा  सब्र रखो मेरी जान, जो मज़ा  इंतज़ार करने में है  वो किसो और चीज  में नही बस  एक बार हाथ में पैसे आ जाए मैं मॉडल बन  जाऊ फिर  देखना  कैसे तुम्हे डोली में बैठा  कर  अपने साथ  ले जाऊंगा अपनी दुल्हन बना  कर 

"ना जाने कब वो दिन आएगा  चलो अच्छा अब फ़ोन  रखती  हूँ आज  बहुत  थक  गयी  हूँ, थोड़ा  पढ़ना  भी  है  एग्जाम सर  पर  रखा  है  मेरे " ज़ोया ने कहा

"आखिर  ऐसा क्या करवा लिया मेरी होने वाली सास ने मेरी जान से की वो आज  थक  गयी  " हम्माद ने कहा 

"कुछ  नही बस  घर  का थोड़ा  बहुत  काम था , चलो अच्छा सुबह मिलती हूँ समय  से आ जाना मैं इंतज़ार  करूंगी " ज़ोया ने कहा


"ठीक  है  जैसा तुम कहो  मैं सुबह ठीक  समय  पर  आ  जाऊंगा  आराम  से सो जाओ " ये कहकर  हम्माद ने फ़ोन  रख दिया और गहरी  सी सास लेकर बोला " शुक्र है  एक बार फिर  मछली जाल में फस  गयी  मुझे  तो लगा  माफ नही करेगी  लेकिन वो तो दो प्यार के मीठे  बोल से ही मुझ जैसे शैतान  को माफ कर  बैठी  बेवक़ूफ़  कही की "


ज़ोया हम्माद के माफ़ी मांगने पर  खुश  थी  और वो किताब हाथ में लेकर पढ़ने  लगी  और थोड़ी  देर बाद सो गयी ।


तबरेज खाना खा कर छत  पर  चहल कदमी करने  चला  जाता, चारो और ख़ामोशी थी  मानो किसी तूफान के आने  की आमद  हो।

थोड़ी  देर बाद वो नीचे  आकर  सो गया । इसी तरह  सुबह होती फिर  दोपहर फिर  शाम। सबकी जिंदगीयों की गाड़ी अपनी अपनी पटरी पर  चल  रही  थी । ज़ोया एग्जाम की तैयारी कर  रही  थी , हम्माद उसे कॉलेज  ले जाता और ले आता  था  ज़ोया के दिल में हम्माद के लिए  मोहब्बत दिन बा दिन बढ़ रही  थी  वो उसके साथ  जिंदगी गुज़ारने के सपने  देख  रही  थी ।


तबरेज  जो की ज़ोया को सिर्फ एक ही बार देख सका  था  उसे दोबारा उससे मिलने की उम्मीद भी  नही थी  लेकिन कही  ना कही उसकी आँखे  उस चेहरे  को तलाश  रही होती हे  लोगो की भीड़  में

आखिर  जिंदगी किस तरह  और किस मोड़ पर इन दोनों को एक साथ  ले आएगी  जो एक दूसरे  से अनजान हे  जानने के लिए  पढ़ते  रहिये हर  सोमवार को।




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4 Comments

Seema Priyadarshini sahay

22-Jun-2022 10:53 AM

बहुत खूबसूरत

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Pallavi

21-Jun-2022 04:49 PM

Nice post 😊

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Raziya bano

20-Jun-2022 02:51 PM

Nice

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